DHYAN YOG
।।ध्यान योग।।
ध्यान की परिभाषा :
तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम।। 3-2 ।।-योगसूत्र अर्थात- जहाँ चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है लेकिन ध्यान का अर्थ है जहाँ भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है।
ध्यान का अर्थ :
ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च
की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक चिज को ही फोकस करती है लेकिन ध्यान उस
बल्ब की तरह है जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। आमतौर पर आम लोगों का ध्यान
बहुत कम वॉट का हो सकता है लेकिन योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है
जिसकी जद में ब्रह्मांड की हर चिज पकड़ में आ जाती है। ध्यान का मूलत: अर्थ है
जागरूकता। अवेयरनेस। होश। साक्षी भाव।
ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है। शरीर पर, मन पर और आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर। इस ध्यान देने के जारा से प्रयास से ही हम अमृत की ओर एक-एक कदम बढ़ सकते है।
ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है। शरीर पर, मन पर और आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर। इस ध्यान देने के जारा से प्रयास से ही हम अमृत की ओर एक-एक कदम बढ़ सकते है।
जागरूकता का महत्व :
वर्तमान में जीने से ही जागरूकता जन्मती है।
भविष्य की कल्पनाओं और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है। द्रष्टा हो जाओ
या फिर नष्ट हो जाओ। ध्यानियों की कोई मृत्यु नहीं होती। लेकिन ध्यान से जो अलग है
बुढ़ापे में उसे वह सारे भय सताते है जो मृत्यु के भय से उपजे है। अंत काल में उसे
अपना जीवन नष्ट ही जान पड़ता है।
ध्यान का परिचय :
ध्यान का परिचय :
जापानी का झेन और चीन का च्यान यह दोनों ही शब्द
ध्यान के अप्रभंश है। अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन कहते हैं, लेकिन अवेयरनेस शब्द
इसके ज्यादा नजदीक है। ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। आंख बंद करके बैठ जाना
भी ध्यान नहीं है। किसी मूर्ति का स्मरण करना भी ध्यान नहीं है। माला जपना भी
ध्यान नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि पांच मिनट के लिए ईश्वर का ध्यान करो- यह
भी ध्यान नहीं स्मरण है।
ध्यान का स्वरूप :
हमारे मन में एक साथ असंख्य कल्पना और विचार चलते रहते हैं। इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा उत्पन्न होने लगता है जिससे मानसिक अशांति पैदा होती है। ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से निकालकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। ध्यान जैसे जैसे गहराता है व्यक्ति साक्षी भाव में स्थित होने लगता है। उस पर किसी भी भाव, कल्पना और विचारों का क्षण मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। मन और मस्तिष्क का मौन हो जाता ही ध्यान कर प्राथमिक स्वरूप है। विचार, कल्पना और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है।
ध्यान में इंद्रियां मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है। शुरू में ध्यान का अभ्यास आंख बंद करके किया जाता है। फिर अभ्यास बढ़ जाने पर आंखें बंद हों या खुली, साधक अपने स्वरूप के साथ ही जुड़ा रहता है। फिर वह किसी काम को करते हुए भी ध्यान की अवस्था में रह सकता है
ध्यान का लाभ :
ध्यान हमारे तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक
सम्बन्ध बनाता है। ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केंद्रित होती है। उर्जा केंद्रित
होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल मिलता है। ध्यान से
वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है।
ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती और मानसिक शांति की अनुभूति होती है। ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती और मानसिक शांति की अनुभूति होती है। ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।